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Showing posts from July, 2015

Manjeel

Manjeel unhi ko milti hai jinke sapno me jaan hoti hai Par hone se kuchh nahi hota Hauslo se udan hoti hai

jokes Damad babu jokes

Ek baar ek kamchor damad apni sasural gya. Waha do hafte tak data raha. Akhir me uski saas ne tang aakar kaha   Saas:- o damad ji, ab to apne ghar jawo. Damad:- Kyo jaon? Sas:- do saftah ho gye ab to nikal lo. Damad:- tumhari beti bhi to mere ghar saal me das mahine rahati hai tab kuchh bhi nahi? Saas:- wo to waha byahi gai hai. Damad:- to mai kaun sa yaha funka gya hu? Mai bhi to yaha byaha gaya hu.

Achhi bat

Agar jivan me safal hona hai, to in char waqyo ko kachare k dibbe me dal do ● log kya kahenge ● mujhse nahi hoga ● abhi mera mood nnahi hai ● meri to kismat hi kharab hai

Earn money online

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AGAR AAP ME HAI TALENT TO DIKHAIYE APNA DAM (ONLINE EARNING)

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The roots of education

The roots of education are bitter, bit the fruit is sweet. शिक्षा की जडे कडवी है परंतु फल मीठा होता है । By    aristotle

a passion

Develope a passion for learning. If you do, you will never cease to grow. सीखने के लिए एक जुनून का विकास यदि तुम करो तो आपको विकसित होने के लिए कभी संघर्ष नही करना पडेगा । By  D'angels

MOST POWERFUL WEAPON

Education is the most powerful weapon which you can use to change the world. शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है । इससे आप दुनिया को बदलने का प्रयोग कर सकते है ।  by  nelson mandela

GAZAL जब कभी तेरा नाम लेते है

जब कभी तेरा नाम लेते है दिल से हम इंतिकाम लेते है मेरे बरबादियों के अफ़साने मेरे यारों के नाम लेते है बस यही एक जुल्म है अपना हम मोहब्बत से काम लेते है हर कदम पर गिरे मगर सिखा कैसे गिरतों को थाम लेते है हम भटककर जुनूं की राहों मे अक्ल से इंतिकाम लेते है Gazal by सरदार अंजुम

Gazal मैनें कुछ तुमसे कहा हो तो जबां जल जाये

कितनी पलकों की नमी मांगके लाई होगी प्यास तब फूल की शबनम ने बुझाई होगी इक सितारा जो गिरा टूंट के उंचाई से किसी जर्रे की हंसी उसने उडाई होगी आंधिया हैं के मचलती है,चली आती है किसी मुफ़लीस ने कही शम्मा जलाई होगी मैनें कुछ तुमसे कहा हो तो जबां जल जाये किसी दुश्मन ने ये अफ़वाह उडाई होगी हम तो आहट के भरोसे पे सहर तक पहुंचे रातभर आपको भी नींद ना आई होगी Gazal by unknown

Gazal मैं होश में था तो फिर उसपे मर गया कैसे

मैं होश में था तो फिर उसपे मर गया कैसे, ये जहर मेरे लहू में उतर गया कैसे, कुछ उसके दिल में लगावट जरूर थी वरना, वो मेरा हाथ दबाकर गुजर गया कैसे, जरूर उसके तसव्वुर की राहत होगी, नशे में था तो मैं अपने ही घर गया कैसे, जिसे भुलाये कई साल हो गये कलीम, मैं आज उसकी गली से गुजर गया कैसे, Gazal by कंधपुरी

GAZAL तेरी आखों में हमने क्या देखा

दिल के दीवारों दर पे क्या देखा बस तेरा नाम ही लिखा देखा तेरी आखों में हमने क्या देखा कभी कातिल कभी खुदा देखा अपनी सुरत लगी पराई सी जब कभी हमने आईना देखा हाय अंदाज तेरे रूकने का वक्त को भी रूका रूका देखा तेरे जाने में और आने में हमने सदियों का फ़ासला देखा फिर ना आया खयाल जन्नत का जब तेरे घर का रास्ता देखा Gazal by  सुदर्शन फ़ाकिर

Gazal तेरे आगे चांद पुराना लगता हैं

तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता हैं तेरे आगे चांद पुराना लगता हैं तिरछे तिरछे तीर नजर के चलते हैं सीधा सीधा दिल पे निशाना लगता हैं आग का क्या हैं पल दो पल में लगती हैं बुझते बुझते एक ज़माना लगता हैं सच तो ये हैं फूल का दिल भी छल्ली हैं हसता चेहरा एक बहाना लगता हैं Gazal by  कैफ़ भोपाली

Gazal चौदवी की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा

कल चौदवी की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा कुछ ने कहा ये चांद है कुछ ने कहा चेहरा तेरा हम भी वही मौजुद थे हम से भी सब पूछा किये हम हंस दिये, हम चुप रहे,मंजूर था पर्दा तेरा इस शहर में किससे मिले, हम से तो छूटी महफ़िले हर शख्स तेरा नाम ले,हर शख्स दिवाना तेरा कुचे को तेरे छोडकर जोगी ही बन जाये मगर ज़ंगल तेरे, परबत तेरे,बस्ती तेरी,चेहरा तेरा बेदर्द सुनी हो तो चल, कहता है क्या अच्छी गज़ल आशिक़ तेरा, रूसवा तेरा,शायर तेरा,इंशा तेरा Gazal by  इब्ने इंशा .

Gazal जिसमें खिले है फूल वो डाली हरी रहे

बदला ना अपने आपको जो थे वही रहे मिलते रहे सभी से मगर अज़नबी रहे दुनिया ना जीत पाओ तो हारो ना ख़ुद को तुम थोडी बहुत तो ज़हान में नाराज़गी रहे अपनी तरहा सभी को किसी की तलाश थी हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ मांगते चलो जिसमें खिले है फूल वो डाली हरी रहे\ Gazal by  निदा फ़ाज़ली

Gazal of Gulzar आईना देखकर तसल्ली हुई

दिन कुछ ऐसे गुजारता हैं कोई जैसे एहसान उतारता है कोई दिल में कुछ यूं संभालता हैं ग़म जैसे जेवर संभालता हैं कोई आईना देखकर तसल्ली हुई हम को इस घर में पहचानता हैं कोई दूर से गुंजते हैं सन्नाटे जैसे हम को पुकारता है कोई Gazal by  गुलज़ार

Gazal दुनिया जिसे कहते हैं जादू का ख़िलौना हैं

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का ख़िलौना हैं मिल जाये तो मिट्टी हैं खो जाये तो सोना है अच्छा सा कोई मौसम तनहा सा कोई आलम हर वक़्त आये रोना तो बेकार का रोना हैं बरसात का बादल तो दिवाना हैं क्या जाने किस राह से बचना हैं किस छत को भिगौना हैं ग़म हो कि ख़ुशी दोनो कुछ देर के साथी हैं फिर रास्ता ही रास्ता हैं हंसना  रोना हैं Gazal by निदा फ़ाज़ली

Gazal हम उस तरफ़ चले थे जिधर रास्ता न था

पत्थर सुलग रहे थे कोई नक्श-ए-पा न था हम उस तरफ़ चले थे जिधर रास्ता न था परछाईयों के शहर की तनहाईयां न पुछ अपना शरीक-ए-ग़म कोई अपने सिवा न था यूं देखती हैं गुमशुदा लम्हों के मोड से इस जिंदगी से जैसे कोई वास्ता न था चेहरों पे जम गई थी ख़यालों की उलझनें लफ़्जों की जुस्तजु में कोई बोलता न था Gazal by  मुमताज राशीद.

Gazal मौत भी मैं शायराना चाहता हूं

अपने होठों पर सजाना चाहता हूं आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूं कोई आसू तेरे दामन पर गिराकर बूंद को मोती बनाना चाहता हूं थक गया मैं करते करते याद तुझको अब तुझे मैं याद आना चाहता हूं छा रहा हैं सारी बस्ती में अंधेरा रोशनी को घर जलाना चाहता हूं आखरी हिचकी तेरे शानों पे आये मौत भी मैं शायराना चाहता हूं Gazal by कतील शिफ़ाई.

Gazal ये कहना है उनसे मोहब्बत है मुझको

मुझे फिर वही याद आने लगे है जिन्हे भुलाने में ज़माने लगे है सुना है हमे वो भुलाने लगे है तो क्या हम उन्हे याद आने लगे है? ये कहना है उनसे मोहब्बत है मुझको ये कहने में उनसे ज़माने लगे है क़यामत यकिनन क़रीब आ गई है 'ख़ुमार' अब तो मस्जिद में जाने लगे है Gazal by  ख़ुमार बाराबंकवी

Gazal जब किसी से कोई गिला रखना

जब किसी से कोई गिला रखना सामने अपने आईना रखना यूं उजालों से वास्ता रखना शमा के पास ही हवा रखना घर की तामिर चाहे जैसी हो इसमें रोने की कुछ जगह रखना मिलना जुलना जहा ज़रूरी हो मिलने ज़ुलने का हौसला रखना Gazal by निदा फ़ाज़ली.

Gazal तू कही भी रहे सर पर तेरे इल्ज़ाम तो है

तू कही भी रहे सर पर तेरे इल्ज़ाम तो है तेरे हाथों की लकिरों में मेरा नाम तो है मुझको तू अपना बना या न बना तेरी खुशी तू ज़माने में मेरे नाम से बदनाम तो है मेरे हिस्से में कोई ज़ाम ना आया ना सही तेरी महफ़िल में मेरे नाम कोई शाम तो है देखकर लोग मुझे नाम तेरा लेते है इसपे मैं खुश हूं मोहब्बत का ये अंजाम तो है वो सितमगर ही सही देखके उसको साबिर शुक्र है इस दिल-ए-बीमार को आराम तो है Gazal by unknown

Gazal by bahadur sah jafar दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए- यार में

लगता नहीं है जी मेरा उजडे दयार में किस की बनी है आलम-ए-नापायेदार में कह दो इन हसरतों से कही और जा बसे इतनी जगह कहां हैं दिल-ए-दागदार में उम्र-ए-दराज़ मांग कर लाये थे चार दिन दो आरज़ू में कट गये दो इन्तज़ार में कितना है बद नसीब "ज़फ़र" दफ़्न के लिये दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए- यार में Gazal by  बहादुरशहा ज़फ़र

Gazal खुदकशी क्या ग़मों हल बनती

हम तो बचपन में भी अकेले थे सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे एक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के एक तरफ़ आंसूओं के रेले थे थी सजी हसरतें दूकानों पर ज़िंदगी के अजीब मेले थे आज ज़हनों दिल भुखे मरते हैं उन दिनों फ़ाके भी हम ने झेले हैं खुदकशी क्या ग़मों हल बनती मौत के अपने भी सौ झमेले हैं Gazal by जावेद अख्तर

Gazal मैं वो मक्तूल, जो कातिल ना बना

राक्षस था, न खुदा था पहले आदमी कितना बडा था पहले आस्मां, खेत, समुंदर सब लाल खून कागज पे उगा था पहले मैं वो मक्तूल, जो कातिल ना बना हाथ मेरा भी उठा था पहले अब किसी से भी शिकायत न रही जाने किस किस से गिला था पहले शहर तो बाद में वीरान हुआ मेरा घर खाक हुआ था पहले Gazal by निदा फ़ाज़ली.

Gazal ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया

ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया यूं तो हर शाम उम्मिदों में गुजर जाती थी आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया कभी तकदीर का मातम कभी दुनिया का गिला मंजिल-ए-इश्क़ में हर दाम पे रोना आया जब हुआ जिक्र जमाने में मोहब्बत का शकिल मुझको अपने दिल-ए-नादान पे रोना आया Gazal by शकिल बदायुनी.

Gazal हुस्न जब मेहेरबां हो तो क्या कीजिये

हुस्न जब मेहेरबां हो तो क्या कीजिये इश्क़ की मग्फिरत की दुआ कीजिये इस सलीक़े से उन से गिला कीजिये जब गिला कीजिये हंस दिया कीजिये दूसरों पे अगर तबसीरा कीजिये सामने आईना रख लिया कीजिये आप सुख से हैं तर्क-ए-त'अल्लुक़ के बाद इतनी जल्दी ना ये फैसला कीजिये कोई धोखा न खा जाये मेरी तरह ऐसे खुल के न सबसे मिला कीजिये अक़्ल-ओ-दिल अपनी अपनी कहें जब खुमार अक़्ल की सुनीये दिल का कहा कीजिये Gazal by ख़ुमार बाराबंकवी.

Gazal तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे

यूं तेरी रहगुज़र से दिवानावार गुज़रे कांधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे बैठे रहे हैं रास्ता में दिल का ख़ंडर सजा कर शायद इसी तरफ़ से एक दिन बहार गुज़रे बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे तू ने भी हमको देखा हमने भी तुमको देखा तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे Gazal by मीना कुमारी

Gazal कच्ची दीवार हूं ठोकर ना लगाना मुझको

कच्ची दीवार हूं ठोकर ना लगाना मुझको अपनी नज़रों में बसा कर ना गिराना मुझको तुम को आंखों में तसव्वुर की तरह रखता हूं दिल में धडकन की तरह तुम भी बसाना मुझको बात करने में जो मुश्किल हो तुम्हें महफ़िल में मैं समझ जाऊंगा नज़रों से बताना मुझको वादा उतना ही करो जितना निभा सकते हो ख़्वाब पूरा जो ना हो वो ना दिखाना मुझको अपने रिश्ते की नज़ाकत का भरम रख लेना मैं तो आशिक़ हूं दिवाना ना बनाना मुझको Gazal by असरार अंसारी.

Gazal फूट निकली तो कई शहर-ए-तमन्ना डूबे

कोई चेहरा हुआ रोशन न उजागर आंखें आईना देख रही थी मेरी पत्थर आंखें ले उडी वक़्त की आंधी जिन्हे अपने हमराह आज फिर ढूंढ रही है वही मंज़र आंखें फूट निकली तो कई शहर-ए-तमन्ना डूबे एक क़तरे को तरसती हुई बंजर आंखें उस को देखा है तो अब शौक़ का वो आलम है अपने हलकों से निकल आई हैं बाहर आंखें तू निगाहों की जुबां खूब समझता होगा तेरी जानिब तो उठा करती हैं अक्सर आंखें लोग मरते ना दर-ओ-बाम से टकरा के कभी देख लेते जो 'कमाल' उस की समंदर आंखें Gazal by अहमद कमाल.

सब पे साक़ी की नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं

उम्र जलवों में बसर हो ज़रूरी तो नहीं हर शब-ए-ग़म की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं चश्म-ए-साक़ी से पियो या लब-ए-साग़र से पियो बेख़ुदी आठों पहर हो ये ज़रूरी तो नहीं नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है उनकी अगोश मे सर हो ये ज़रूरी तो नहीं शेख़ करता तो है मस्जिद में ख़ुदा को सजदे उसके सजदों में असर हो ये ज़रूरी तो नहीं सब की नज़रों में हो साक़ी ये ज़रूरी है मगर सब पे साक़ी की नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं ख़ामोश दहेलवी.

ज़िंदगी तूने लहू लेके दिया कुछ भी नहीं

ज़िंदगी तूने लहू लेके दिया कुछ भी नहीं तेरे दामन में मेरे वास्ते क्या कुछ भी नहीं मेरे इन हाथों की चाहो तो तलाशी ले लो मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं हमने देखा है कई ऐसे ख़ुदाओं को यहां सामने जीन के वो सच मुच का खुदा कुछ भी नहीं या ख़ुदा अब के ये किस रंग से आई है बहार जर्द ही ज़र्द है पेडों पे हरा कुछ भी नहीं दिल भी इक जिद पे अडा है किसी बच्चे की तरह या तो सब कुछ ही इसे चाहिये या कुछ भी नहीं राजेश रेड्डी.

बिन तेरे तेरी 'यामीनी' कम है.

आ भी जाओ की ज़िंदगी कम है तुम नहीं हो तो हर ख़ुशी कम है वादा कर के ये कौन आया नहीं शहर में आज रौशनी कम है जाने क्या हो गया है मौसम को धूप ज़ियादा है चांदनी कम है आईना देख कर ख़याल आया आज कल इनकी दोस्ती कम है तेरे दम से ही मैं मुकम्मल हूं बिन तेरे तेरी 'यामीनी' कम है. yamini das

इस से पहले के बेवफ़ा हो जाये

इस से पहले के बेवफ़ा हो जाये क्यों ना ऐ दोस्त हम जुदा हो जाये तू भी हीरे से बन गया पत्थर हम भी कल क्या से क्या हो जाये हम भी मजबूरियों का उज़्र करे और कहीं और मुबतला हो जाये इश्क़ भी खेल हैं नसीबों का ख़ाक हो जाये या किमिया हो जाये अहमद फ़राज़.

दर्द अपनाता है पराये कौन

दर्द अपनाता है पराये कौन कौन सुनता है और सुनाये कौन कौन दोहराये वो पुरानी बात ग़म अभी सोया है जगाये कौन वो जो अपने है क्या वो अपने है कौन दुख झेले आज़माये कौन अब सुकूं है तो भूलने में है लेकीन उस शख़्स को भुलाये कौन आज फिर दिल है कुछ उदास उदास देखिये आज याद आये कौन जावेद अख़्तर.

हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी

हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी फिर भी तनहाईयों का शिकार आदमी सुबह से श्याम तक बोझ ढाता हुआ अपनी ही लाश पर खुद मजार आदमी हर तरफ़ भागते दौडते रास्ते हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी रोज जीता हुआ रोज मरता हुआ हर नए दिन नया इंतजार आदमी जिंदगी का मुकद्दर सफ़र दर सफ़र आखरी सांस तक बेकरार आदमी निदा फ़ाज़ली

नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं

नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है सब उन को सुनाने के दिन आ रहे हैं अभी से दिल-ओ-जाँ सर-ए-राह रख दो के लुटने लुटाने के दिन आ रहे हैं टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं सबा फिर हमें पूछती फिर रही है चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं चलो "फ़ैज़" फिर से कहीं दिल लगायेँ सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दिल में इक लहर सी उठी है अभी

दिल में इक लहर सी उठी है अभी कोई ताज़ा हवा चली है अभी शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में कोई दीवार सी गिरी है अभी कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी और ये चोट भी नई है अभी भरी दुनिया में जी नहीं लगता जाने किस चीज़ की कमी है अभी तू शरीक-ए-सुख़न नहीं है तो क्या हम-सुख़न तेरी ख़ामोशी है अभी याद के बे-निशाँ जज़ीरों से तेरी आवाज़ आ रही है अभी शहर की बेचराग़ गलियों में ज़िन्दगी तुझ को ढूँढती है अभी सो गये लोग उस हवेली के एक खिड़की मगर खुली है अभी तुम तो यारो अभी से उठ बैठे शहर में रात जागती है अभी वक़्त अच्छा भी आयेगा 'नासिर' ग़म न कर ज़िन्दगी पड़ी है अभी नासिर काज़मी

वो अपने चेहरे में सौ अफ़ताब रखते हैं

वो अपने चेहरे में सौ अफ़ताब रखते हैं इसीलिये तो वो रुख़ पे नक़ाब रखते हैं वो पास बैठे तो आती है दिलरुबा ख़ुश्बू वो अपने होठों पे खिलते गुलाब रखते हैं हर एक वर्क़ में तुम ही तुम हो जान-ए-महबूबी हम अपने दिल की कुछ ऐसी किताब रखते हैं जहान-ए-इश्क़ में सोहनी कहीं दिखाई दे हम अपनी आँख में कितने चेनाब रखते हैं हसरत जयपुरी

सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता

असर उसको ज़रा नहीं होता । रंज राहत-फिज़ा नहीं होता ।। बेवफा कहने की शिकायत है, तो भी वादा वफा नहीं होता । जिक़्रे-अग़ियार से हुआ मालूम, हर्फ़े-नासेह बुरा नहीं होता । तुम हमारे किसी तरह न हुए, वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता । उसने क्या जाने क्या किया लेकर, दिल किसी काम का नहीं होता । नारसाई से दम रुके तो रुके, मैं किसी से खफ़ा नहीं होता । तुम मेरे पास होते हो गोया, जब कोई दूसरा नहीं होता । हाले-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर, हाथ दिल से जुदा नहीं होता । क्यूं सुने अर्ज़े-मुज़तर ऐ ‘मोमिन’ सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता । (राहत फ़िज़ा--शांति देने वाला, ज़िक्र-ए-अग़यार--दुश्मनों की चर्चा हर्फ़-ए-नासेह--शब्द नासेह (नासेह-नसीहत करने वाला) यार--दोस्त-मित्र, चारा-ए-दिल--दिल का उपचार, नारसाई--पहुँच से बाहर, अर्ज़ेमुज़्तर--व्याकुल मन का आवेदन) -मोमिन ख़ाँ 'मोमिन'

ये दिन बहार के अब के भी रास न आ सके

ये दिन बहार के अब के भी रास न आ सके कि ग़ुंचे खिल तो सके खिल के मुस्कुरा न सके मेरी तबाही दिल पर तो रहम खा न सकी जो रोशनी में रहे रोशनी को पा न सके न जाने आह! कि उन आँसूओं पे क्या गुज़री जो दिल से आँख तक आये मिश्गाँ तक आ न सके रहें ख़ुलूस-ए-मुहब्बत के हादसात जहाँ मुझे तो क्या मेरे नक़्श-ए-क़दम मिटा न सके करेंगे मर के बक़ा-ए-दवाम क्या हासिल जो ज़िंदा रह के मुक़ाम-ए-हयात पा न सके नया ज़माना बनाने चले थे दीवाने नई ज़मीं, नया आसमाँ बना न सके जोश मलीहाबादी

बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ

तिरे इश्क़ की इंतहा चाहता हूँ मिरी सादगी देख, क्या चाहता हूँ सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ वे जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को कि मैं आपका सामना चाहता हूँ कोई दम का मेहमाँ हूँ ऎ अहले-महफ़िल चिराग़े-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ (वादा-ए-बेहिजाबी=पर्दादारी हटाने का वादा; सब्र-आज़मा=धैर्य की परीक्षा लेने वाली; ज़ाहिदों=संयम से रहने वालों को) इक़बाल

दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह

दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह मैनें तुझसे चाँद सितारे कब माँगे रौशन दिल बेदार नज़र दे या अल्लाह सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके सचमुच की अब कोई सहर दे या अल्लाह या धरती के ज़ख़्मों पर मरहम रख दे या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह क़तील शिफ़ाई

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो आँखों में नमी हँसी लबों पर क्या हाल है क्या दिखा रहे हो बन जायेंगे ज़हर पीते पीते ये अश्क जो पीते जा रहे हो जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है तुम क्यों उन्हें छेड़े जा रहे हो रेखाओं का खेल है मुक़द्दर रेखाओं से मात खा रहे हो कैफ़ी आज़मी

तेरी नज़र ने ही ये हौसला दिया था मुझे

वो इत्तेफ़ाक़ से रस्ते में मिल गया था मुझे मैं देखता था उसे और वो देखता था मुझे अगरचे उसकी नज़र में थी न आशनाई मैं जानता हूँ कि बरसों से जानता था मुझे तलाश कर न सका फिर मुझे वहाँ जाकर ग़लत समझ के जहाँ उसने खो दिया था मुझे बिखर चुका था अगर मैं तो क्यों समेटा था मैं पैरहन था शिकस्ता तो क्यों सिया था मुझे है मेरा हर्फ़-ए-तमन्ना, तेरी नज़र का क़ुसूर तेरी नज़र ने ही ये हौसला दिया था मुझे अख़्तर अंसारी

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबाँ नहीं मिलता बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता शहरयार

तेरी सूरत जो इत्तेफ़ाक़ से हम

वो बुलायें तो क्या तमाशा हो हम न जायें तो क्या तमाशा हो ये किनारों से खेलने वाले डूब जायें तो क्या तमाशा हो बन्दापरवर जो हम पे गुज़री है हम बतायें तो क्या तमाशा हो आज हम भी तेरी वफ़ाओं पर मुस्कुरायें तो क्या तमाशा हो तेरी सूरत जो इत्तेफ़ाक़ से हम भूल जायें तो क्या तमाशा हो वक़्त की चन्द स'अतें 'साग़र' लौट आयें तो क्या तमाशा हो साग़र सिद्दीकी

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते तूने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरना हम कई सदियाँ तुझे घूम के देखा करते लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते गुलज़ार

ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते तूने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरना हम कई सदियाँ तुझे घूम के देखा करते लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते गुलज़ार

ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते तूने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरना हम कई सदियाँ तुझे घूम के देखा करते लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते गुलज़ार

ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते तूने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरना हम कई सदियाँ तुझे घूम के देखा करते लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते गुलज़ार

वो इक चराग़ था मैंने उसे बुझाया है

वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है तमाम उम्र मेरा दम उसके धुएँ से घुटा वो इक चराग़ था मैंने उसे बुझाया है बशीर बद्र

हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए दुष्यंत कुमार

हक़ तो मैं पहले ही हक़दार को दे देता हूँ।

जो भी मिल जाता है घर बार को दे देता हूँ। या किसी और तलबगार को दे देता हूँ। धूप को दे देता हूँ तन अपना झुलसने के लिये और साया किसी दीवार को दे देता हूँ। जो दुआ अपने लिये मांगनी होती है मुझे वो दुआ भी किसी ग़मख़ार को दे देता हूँ। मुतमइन अब भी अगर कोई नहीं है, न सही हक़ तो मैं पहले ही हक़दार को दे देता हूँ। जब भी लिखता हूँ मैं अफ़साना यही होता है अपना सब कुछ किसी किरदार को दे देता हूँ। ख़ुद को कर देता हूँ कागज़ के हवाले अक्सर अपना चेहरा कभी अख़बार को देता हूँ । मेरी दुकान की चीजें नहीं बिकती नज़्मी इतनी तफ़सील ख़रीदार को दे देता हूँ। अख़्तर नाज़्मी

वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला अगर गले नही मिलता तो हाथ भी न मिला घरों पे नाम थे, नाम के साथ ओहदे थे बहुत तलाश किया, कोई आदमी न मिला तमाम रिश्तों को घर पे छोड आया था फ़िर उसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला बहुत अजीब है ये गुरबतों की दूरी भी वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला बशीर बद्र

आईनों को तोड के पछताओगे

हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगे, आईनों को तोड के पछताओगे। जब बदी के फूल महकेंगे यहाँ, नेकियों पर अपने तुम शरमाओगे। सच को पहले लफ़्ज फिर लब देंगे हम, तुम हमेशा झूठ को झूठलाओगे। सारी सिमते बेकशिश हो जायेगी, घूम फिर के फिर यही आ जाओगे। रूह की दीवार के गिरने के बाद, बे बदन हो जाओगे, मर जाओगे। शहरयार।

ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ मेहरबाँ होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त मैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी न सकूँ डाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी के मिटा भी न सकूँ ज़ब्त कमबख़्त ने और आ के गला घोंटा है के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना क्या कसम है तेरे मिलने की के खा भी न सकूँ उस के पहलू में जो ले जा के सुला दूँ दिल को नींद ऐसी उसे आए के जगा भी न सकूँ नक्श-ऐ-पा देख तो लूँ लाख करूँगा सजदे सर मेरा अर्श नहीं है कि झुका भी न सकूँ बेवफ़ा लिखते हैं वो अपनी कलम से मुझ को ये वो किस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ इस तरह सोये हैं सर रख के मेरे जानों पर अपनी सोई हुई किस्मत को जगा भी न सकूँ अमीर मीनाई

होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते

होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते साहिल पे समंदर के ख़ज़ाने नहीं आते। पलके भी चमक उठती हैं सोते में हमारी आंखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते। दिल उजडी हुई इक सराय की तरह है अब लोग यहां रात बिताने नहीं आते। उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते। इस शहर के बादल तेरी जुल्फ़ों की तरह है ये आग लगाते है बुझाने नहीं आते। क्या सोचकर आए हो मुहब्बत की गली में जब नाज़ हसीनों के उठाने नहीं आते। अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गये है आते है मगर दिल को दुखाने नहीं आते। डॉ.बशीर बद्र

तो लगता है कि तुम हो

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो। जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन में शरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो। संदल से महकती हुई पुर-कैफ़ हवा का झोंका कोई टकराए तो लगता है कि तुम हो। ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर नदी कोई बल खाए तो लगता है कि तुम हो। जब रात गए कोई किरन मेरे बराबर चुप-चाप सी सो जाए तो लगता है कि तुम हो। - जाँ निसार अख़्तर

kinara karne walo se kinara kar liya jaye

musalsal gam uthane se behtar hai , agar mano kinara karne walo se kinara kar liya jaye by unknown

Bikhre ashkon ke moti hum piro naa sake

Bikhre ashkon ke moti hum piro naa sake, Teri yaad mein saari raat so naa sake, Beh naa jaaye aansuon mein tasveer teri, Ye soch kar hum ro naa sake ……. By unknown

Do ashq meri yaad mein bahaa jaate to kya jaata

Do ashq meri yaad mein bahaa jaate to kya jaata…., Chand kaliyaan laash par bichhaa jaate to kya jaata…, Aaye ho mayyat par sanam odh kar naqaab tum…, Agar ye chaand ka tukda dikhaa jaate to kya jaata..? By unknown

aisa koi dildar nahi milta!!

Koi hume pyar kare aisa koi pyar nahi milta; Zindagi bhar saat nibhaye aisa koi yaar nahi milta; Dil mein hai umang kisi se pyar karneki, Magar koi hume jii bharke pyar kare aisa koi dildar nahi milta!! By unknown

Utray jo zindagi teri gehraiyon mai hum

Utray jo zindagi teri gehraiyon mai hum.. Mehfil mai reh kay bhi rahay tanhayon mai hum.. Deewanagi nahin to or kya kahain?.. Insaan dhound tay rahay parchaiyon mai hum… By unknown

Majburi mein jab koi juda hota ha

Majburi mein jab koi juda hota hai, Zaruri nahi ke wo bewafa hota hai. De kar wo aapki aankho me aansu, Akele me aapse bhi zyada rota hai. by unknown

Raah me kitne kante q na ho

Saath agar doge muskrayenge zarur, Pyar agar dil se karoge to nibhayenge zarur, Raah me kitne kante q na ho , Awaz agar dil se doge to aayenge zarur… by unknown

Mohabbat Hai K Nafrat Hai

Mohabbat Hai K Nafrat Hai ,Koi Itna Tou Samjhaye Kabhi Main Dil Se Larta Hon  Kabhi Dil Mujh Se Larta Hai…!! by unknown

Palke Uthe To Izhaar Ho Jata Hai

Nazare Mile To Pyar Ho Jata Hai, Palke Uthe To Izhaar Ho Jata Hai, Na Jane Kya Kasish Hai Chahat Main, Ke Koi Anjaan Bhi Hamari Zindagi Ka Haqdaar Ho Jata Hai. by unknown

Lekin aap ki ek nazar ne hame nilaam kar diya

Ishq ne hame benaam kar diya, har khushi se hame anjaan kar diya, hamne to kabhi nahi chaha ke hame bhi mohabbat ho, Lekin aap ki ek nazar ne hame nilaam kar diya… by unknown

Tumhara Hoon Main To Sambhalo Mujhe

 Kaise Kahun Ke Apna Bana Lo Mujhe, Baahon Mein Apni Sama Lo Mujhe, Bin Tumhare Ek Pal Bhi Kat-ta Nahi, Tum Aa Kar Mujhi Se Chura Lo Mujhe, Zindagi To Wo Hai Sang Tumhare Jo Guzri, Duniya Ke Gamon Se Ab Chhupa Lo Mujhe, Meri Sabse Gehri Khwahish Ho Puri, Tum Agar Paas Apne Bula Lo Mujhe, Ye Kaisa Nasha Hai Jo Behka Raha Hai, Tumhara Hoon Main To Sambhalo Mujhe, Na Jaane Phir Kaise Guzregi Zindagani, Agar Apne Dilse Kabhi Tum Nikalo Mujhe by unknown

Jis Pal Teri Maang Me Mere naam ka Sindoor Hoga

Tere Chehre pe Mera Noor Hoga Fir Tu Na Kabhi Mujhse Dur Hoga Soch Kya Khusi Milegi Jaan Us Pal Jis Pal Teri Maang Me Mere naam ka Sindoor Hoga by unknown

Pyar aur Maut se Darta Kaun Hai

Pyar aur Maut se Darta Kaun Hai… Pyar to ho jata he Ise Krta Kaun Hai…..!! Hum to Kar de Pyar me Jaan Bhi Qurban… Par Pata to Chale hmse Pyar Karta kaun hai…….!! by unknown

Tarikh Mohabbat Ki Phir Se Jawan Kr Do

Bas Ek Choti Si Haan Kr Do Hamare Naam Is Tarha Sara Jahan Kr Do! Wo Mohabbtain Jo Tumare Dil Mein Hain Un ko Zuban Pr Lao 0r Bayan Kr Do! Aaj Bas Ap Kaho 0r Kehte Hi Jao Hum Bas Sune Aisa Be-Zuban Kr Do! Hui Purani Dastan Heer Ranjha Ki Tarikh Mohabbat Ki Phir Se Jawan Kr Do, Aa-Jao Ke Aisa Toot Kr Chahon Tumhe Hamari Mohabat Ko Mohabbat Ka Nishan Kr Do! Apne Dil Me Is Tarha Chupa Lo MujKo Rahon Humesha Is me aisa Mera Makan kar Do…!!! by unknown

Aap kl bhi hamari thi aaj bhi hamari ho

Aap khud nhi janti aap kitni pyari ho Jaan to hamari par jaan se pyaari ho Duriyon k hone se koi fark nhi padta Aap kl bhi hamari thi aaj bhi hamari ho…!! by unknown

Apna toh chaahaton mein yahi usool hain

Apna toh chaahaton mein yahi usool hain Jab tu qubool hai, toh tera sub kuch qubool hai… by  unknown

गर इंसान को इंसान में इंसान नजर आए

जब मुल्ला को मस्जिद में राम नजर आए, जब पंडित को मंदिर में रहमान नजर आए, सुरत ही बदल जाए इस दुनिया की गर इंसान को इंसान में इंसान नजर आए, by unknown

वही मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वार लिए बैठे हैं

किस से सीखू मैं खुदा की बंदगी, सब लोग खुदा कi  बंटवार किए बैठे है, जो लोग कहते है खुदा कण कण में है, वही मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वार लिए बैठे हैं by unknown

Apni dhun me rahta hu

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You can heart

You can heart a heart only till it loves you