Gazal of Gulzar आईना देखकर तसल्ली हुई

दिन कुछ ऐसे गुजारता हैं कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई

दिल में कुछ यूं संभालता हैं ग़म
जैसे जेवर संभालता हैं कोई

आईना देखकर तसल्ली हुई
हम को इस घर में पहचानता हैं कोई

दूर से गुंजते हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई

Gazal by  गुलज़ार

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