आईनों को तोड के पछताओगे

हर तरफ़ अपने को बिखरा पाओगे,
आईनों को तोड के पछताओगे।
जब बदी के फूल महकेंगे यहाँ,
नेकियों पर अपने तुम शरमाओगे।
सच को पहले लफ़्ज फिर लब देंगे हम,
तुम हमेशा झूठ को झूठलाओगे।
सारी सिमते बेकशिश हो जायेगी,
घूम फिर के फिर यही आ जाओगे।
रूह की दीवार के गिरने के बाद,
बे बदन हो जाओगे, मर जाओगे।

शहरयार।

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