जिनसे हम बिछुड़ गये अब वो जहान कैसे हैं


जिनसे हम बिछुड़ गये अब वो जहान कैसे हैं
शाख़े-गुल कैसी हैं ख़ुशबू के मकान कैसे हैं
ऐ सबा तू तो उधर ही से गुज़रती होगी
उस गली में मेरे पैरों के निशान कैसे हैं


 By: काव्य मोती संग्रह

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